जब यकीन ना हो
जब यकीन ना हो
जब यकीन पर यकीन ना हो।
तुम सोच रहे हो कि ऐसा हो ना हो।
मन कुछ कहे और दिमाग में कुछ हो।
बेचैनी का यह आलम हो
कि एक भी पल काटना भारी हो।
जब भी कभी जीवन में कुछ ऐसा सा समय हो।
कर लेना आंख बंद, परमात्मा से केवल इतना ही कहो।
मेरी चाही कभी ना हो
जो तू चाहे सो हो,
हित अनहित इस जगत में
तुम वही करो जो मेरे लिए बेहतर हो।
यकीन परमात्मा पर कर लेना
होगा कुछ ऐसा,
कि जिस पर तुमको भी यकीन करना मुश्किल होगा।