जब ठहर जाये जिंदगी
जब ठहर जाये जिंदगी
किसी न किसी पल जब ठहर जाये जिंदगी,
मंजिल से बड़ी लगने लगे राह-ए बंदगी।
तो देखो उस टिमटिमाते हुए सितारे को,
चमचमाते हुए जा रहे हैं चाँद की ओर,
उसकी शीतलता के लिए।
किसी न किसी पल जब ठहर जाये जिंदगी,
मंजिल से बड़ी लगने लगे राह-ए बंदगी।
तो देखो उन बहती हुई नदियों को,
जा रही है सागर की ओर,
महासागर बनने के लिए।
किसी न किसी पल जब ठहर जाये जिंदगी,
मंजिल से बड़ी लगने लगे राह-ए बंदगी।
तो देखो उस उड़ती हुई मिट्टी को,
जा रही हैं चट्टान की ओर,
ऊँचा पर्वत बनने के लिए।
किसी न किसी पल जब ठहर जाये जिंदगी,
मंजिल से बड़ी लगने लगे राह-ए बंदगी।
तो देखो उन बहती हुई हवाओं को,
जा रही हैं बादलो संग तलैया की ओर,
छोटी बूंदों से नदी बनने के लिए।
किसी न किसी पल जब ठहर जाये जिंदगी,
मंजिल से बड़ी लगने लगे राह-ए बंदगी।
