जब मिलोगे तुम
जब मिलोगे तुम
मैं नहीं करती तुमसे मिलने की ख्वाहिश
क्यूँकि तुम रहते हो मेरे पास मुझ में ही कहीं
मेरी बातों में, मेरी हंसी में, तो कभी मेरे आँसुओं में
फिर भी जब मिलोगे तुम, तो गले लगाऊंगी तुम्हें।
मैं नहीं करती तुम्हें देखने की तमन्ना क्यूँकि
तुम नज़र आते हो मुझे बंद आँखों से भी
हरपल रहते हो मेरे ख्वाबों में, ख्यालों में,
और आईने मे दिखते मेरे अक्स में।
फिर भी जब मिलोगे तुम, तो जी भर कर देखुंगी तुम्हें
मैं नहीं करती तुम्हे पाने का अरमान
क्यूँकि तुम शामिल हो मेरे अस्तित्व में कहीं
समाऐ हो मेरे हृदय में,
आत्मा में, मेरे मन के हर एक भाव में।
फिर भी जब मिलोगे तुम, तो तुम्हारी हो जाउँगीं मैं
मैं जी भर कर जी लूँगी उन पलों को,
जब तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में होगा
और होंगी अनगिनत अनकही बातें
सपनो में ही सही जब मिलोगे तुम।