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Ayush Kaushik

Romance Fantasy

4.4  

Ayush Kaushik

Romance Fantasy

जब कभी

जब कभी

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जब कभी हमने कोशिश की करीब उनके आने की

न जाने एक अजीब सी दूरी पाँव पसार लेती थी।

जब कभी हिम्मत की कुछ बात दिल की कहने की

एक अजीब सा डर दस्तक दे उठता था।


जब कभी जुबान ने बोलना चाहा लफ़्ज़ों को

एक अजीब सा पूर्णविराम लग जाता था।

जब कभी नज़रों से नज़र मिल जाती न

जाने क्यों पलखे डर से बंद हो जाती थी।


जब कभी लिखने बैठे कलम लेके न

जाने क्यों उंगलिया कलम न बाँध पाती थी।

जब कभी सोचने लगते उनके बारे में

न जाने क्यों विचार सारे उलझ जाते थे।


जब कभी कदम लेते थे उनकी और

न जाने क्यों रास्ते खो जाते थे।

जब कभी वो आसपास होते थे एक अजीब सी

बेचैनी हो उठ थी सारे ब्रम्हाण्ड में।


अब और नही ऐसे रह सकता मैं ,

अब कोई दूरी नज़दीक न थी,

डर भी डर के जा चुका था, पूर्णविराम अब मिट गया था,

पलकें जैसे बंद होना भुल गई थी,


कलम मानो उंगलिया बन गयी थी,

विचार किसी नदी जैसे अविरल बह रहे थे,

कदमों ने छलांग लगा दी थी,

ब्रम्हाण्ड भी शांत था एक शून्य के जैसा

जब से अब दुनिया बदल गयी है मेरी।


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