.... जब बैसाखी आई थी.......
.... जब बैसाखी आई थी.......
आजादी के लिए न जाने,
कितनों ने जान गवाई थी ।
क्या वह दिन सब भूल गए,
जब बैसाखी आई थी ।
बैसाखी का दिन पावन था,
सभी खुशी से झूम रहे थे ।
चारों ओर धूम मची थी,
सभी मेला घूम रहे थे ।
तभी वहां पर डायर आया,
काल का रूप धारण कर ।
निर्दोषों को मार गया,
1650 गोलियां चलाकर ।
क्या बच्चे क्या बूढ़े,
सबको याद निशानी थी ।
जब जलियांवाला बाग में लिखी ,
खूनी कलम कहानी थी ।
मत भूलो मासूमों को,
जिन्होंने प्राण गवाएं हैं ।
जिनके बलिदानों से हमने,
यह स्वतंत्रता पाई है ।
