जन्नत की सैर
जन्नत की सैर
जन्नत की सैर, इंतज़ार में है तुम्हारे,
कभी पास बैठो समंदर के,
उन लहरों को देखो,
उनकी पुकार सुनो,
कब से इंतज़ार में है तुम्हारे,
कभी पास बैठो पहाड़ के अपने आसपास देखो,
उन हसीन वादियों में खोके देखो
जो कब से राह में है तुम्हारे,
कभी आसमान के नीचे लटके देखो,
उन तारों की शोखियों में दुबके देखो,
कब से इंतज़ार में है तुम्हारे,
कभी खुली हवा में बाहें फैला कर देखो,
सुकून के एहसास को जीके देखो,
जो कब से राह में है तुम्हारे,
कभी उस बारिश में भीगके देखो,
वो मिट्टी की खुशबू कब से इंतज़ार में है तुम्हारे,
कभी उस महल में जाके देखो,
उस प्रेम कहानी को समझ के देखो,
उस मोहब्बत की गहराई में डुबके देखो,
जो कब से राह में है तुम्हारे,
जन्नत का एहसास यही है जनाब,
इधर उधर मत खोजो बस इन एहसासों को
एक बार जीके देखो,
जो कब से इंतज़ार में है तुम्हारे।