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Mitali Jain

Abstract

4.5  

Mitali Jain

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चाँद

चाँद

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218


इस कुदरत के करिश्में को देखकर,

वो नीले आसमान के नीचे बैठकर,

वो मेरी फेवरेट ग़ज़ल सुनकर,

उस प्यारे से चांद को निहारकर,


एक अलग ही दुनिया में जाकर खुश थी मैं,

वो ठंडी हवा मुझे बहुत भाई थी,

क्योंकि उस रात मुझे अच्छी नींद आई थी,

आज उस चांद में कुछ तो बात थी,


कुछ ज्यादा ही दिल को भाया था वो आज,

कुछ ज्यादा ही सुकून पाया था मैंने उससे आज,

सारी दिल की बाते कह दी थी मैंने उससे आज,

क्योंकि इसी के पास तो है मेरे सारे राज,


मैं हर पल खुद से कहती हूं कि तू,

इन एहसासों के लिए बनी है और,

इनमें ही तेरी मुस्कान छिपी है,

क्योंकि तू पुराने ख्यालों की लड़की है,


और तेरे जज्बात की गठरी इनसे बंधी है।


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