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Mayank Kumar 'Singh'

Abstract

5.0  

Mayank Kumar 'Singh'

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जागती रहना तुम

जागती रहना तुम

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जागती रहना तुम

बरगद के पेड़ के पास,

फिर ठिकाना होगा अपना

संभल के रहना तुम,

उस बरगद के आंखों में

फिर एक सपना होगा ।


जागती रहना तुम

कि मैं फिर वहां आऊंगा

बूढ़े बरगद के पेड़ को

युवा बना हंसा जाऊंगा ।


जागती रहना तुम

अंधेरी रात में हमारी

मुलाकात होगी ..

जहां दुनियाभर का सन्नाटा होगा ।


जागती रहना तुम,

कि जहां ट्रैफिक का

शोर नहीं होगा ,

दिल में अनेक हॉर्न बजेंगी

पर सुनने वाला कोई नहीं होगा,

जहां एक्सीडेंट करना ही

जीवन होगा और बचना मौत ।

 

जागती रहना तुम,

कि बरगद के छांव में कई साये

खिलखिला रहे होंगे,

जीवन सबकी सो गई होगी

पर मौत के बाद सब जाग रहे होंगे ।


जागती रहना तुम,

कि कहीं इंतजार में

सांझ न हो जाए,

बूढ़ा बरगद सूरज के डूबते ही

अकेला फिर न तन्हा हो जाए ।


जागती रहना तुम,

कि आज फ़िर से सो न जाना

बरगद को आंसू देकर

फ़िर खो न जाना,

मैं कैसे बताऊँ तुम्हें,

मैं तुम्हारे पास ही हूँ,

बरगद को हंसाने के लिए

तुम्हारे साथ ही हूं ।


जागती रहना तुम,

फिर सामाजिक बंधन

की गोली लेकर सो न जाना,

यह बरगद कई जन्मों से

यूं ही हमारे साथ है 

यह बुड्ढा नहीं हुआ, बस

जागती रहना तुम ।


 















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