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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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जागरण का यंत्र दे दो

जागरण का यंत्र दे दो

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घुटन के आगोश में बंदी हुआ हूँ

दे सको तो आस के दो शब्द दे दो

विश्वभर में गूंजता था वो पुराना मन्त्र दे दो।


सुना था हो रोशनी के गांव वाले

एक छुवन से पत्थरो में प्राण भरते

पत्थरों में प्राण भरते

श्राप को बरदान करते

स्याह अंधेरे जिया हूँ

दे सको तो रौशनी का तंत्र देदो

विश्वभर में गूंजता था वो पुराना मन्त्र दे दो।


पढ़ा था तुम गन्ध झोंका हुये हो

सरसराहट से हृदय में चैन भरते

हृदय में चैन भरते

अस्त का अभिषेक करते

दर्द के अम्बार से बोझिल हुआ हूँ

दे सको तो चाह का एक सन्त दे दो

विश्वभर में गूंजता था वो पुराना मन्त्र दे दो।


लिखा था तुम हो बड़े विस्तार वाले

दृष्टि से ही शक्ति का संचार करते

शक्ति का संचार करते

रेत में भी फूल झरते

एक उदासी ओढ़कर सोया हुआ हूँ

दे सको तो जागरण का यंत्र दे दो

विश्वभर में गूंजता था वो पुराना मन्त्र दे दो।



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