जादू
जादू
जादू की रसोई मॉं की थी
भरती ऊर्जा वो जहाँ की थी।।
कैसे झटपट ढल जाता सब
स्वादिष्ट पौष्टिक भोजन जब
मॉं परस रही थाली में तब
मृदु मोहक मन मुसकाती थी।।
भूख मिटे, मन ना भरता
वह स्वाद है आजीवन रहता
ऑंचल में सदा सुलाती थी
मन की हर भूख मिटाती थी।।
ऐश्वर्य की परिभाषा इतनी
मॉं की थी रसोई ही जितनी
स्वर्गिक सुख का आनंद यही
छप्पन वह भोग बनाती थी।।
परिवार इकट्ठा खाता था
हर भोजन पर इठलाता था
सुख - दुःख सब सॉंझा करते थे
परवाह एक - दूजे की थी ।।
बदला मौसम सब बदल गया
पैसा सब का भगवान बना
बाहर से मँगवाते भोजन
ममता ‘ उदार ‘ दुःख पाती थी।।
