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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

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Bhawna Kukreti Pandey

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इत्तेफाकन

इत्तेफाकन

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मैँ हमेशा

यह कहती आई

प्यार इत्तेफाकन 

हो सकता है

लेकिन लगाव नहीं।


समय लगाव को 

भरता रहता है मन में

और मन 

पीता रहता है

उसका मीठा मीठा जल

भरता रहता है 

मन के हज़ारों हजार 

सुराख

जैसे 

मन हो कोई 

स्पंज का टुकड़ा।


लेकिन यही

बुद्धु सा मन अक्सर 

भरम में पड़ा रहता है

की उसे भर कौन रहा है

प्रेम या लगाव।


इसी उहापोह में

तेज धूप 

अधूरी उम्मीदों की

ख्वाहिशों की बेकद्री की

जब बेतहाशा सुखाने 

लगती है 

वे अनगिनत 

रस से भरे सुराख़

सूख जाता है मन।


लगाव के चिह्न 

इत्तेफाकन बन जाते है,

रह जाते है मन पर।


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