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इसमें तेरा घाटा ।

इसमें तेरा घाटा ।

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बात ये थोड़ी पुरानी है,

बचपन की मेरे ये कहानी है।


मैदान पर खेलने जब भी जाता था,

एक विशाल वृक्ष को वहां पाता था ।


मैं उसकी छांव के तले यू ही सो जाता था,

निस्वार्थ भाव से फल वो अपने मुझे खिलाता था।


कुछ ही समय में बना वह मेरा सबसे प्रिय मित्र,

बातें बड़े स्नेह से सुनता वो मेरी, हो भले ही वो विचित्र।


शहर से अपने मैं फिर जुदा सा हो गया,

उस छांव से मिलना अब ख़ुदा सा हो गया ।


सदियों बाद जब मैं पहुंचा उसके पास,

अलग ही था वो एहसास ।


किन्तु मेरा मित्र दर्द से भरा था,

अंदर से टूटा, बाहर से थोड़ा कम हरा था ।


देख के उसे ऐसी स्थिति में, मैं भी कह उठा,

“क्या हुआ इतने वर्षों में जो तू यू रो उठा। “


सुन के मेरे ऐसे कुछ सवाल

समक्ष आये उसके दिल के हाल।


“बहुत अधिक है मेरे संग अत्याचार हुआ,

सुकून से मेरा जीना अब दुश्वार हुआ ।


सारे गमों में कुछ इस प्रकार मैं जला हूं,

बढ़ती उम्र के संग मैं अब ढला हूं ।


मेरे बच्चों को कुछ इस प्रकार इन्होंने मुझसे अलग किया,

ना सोचा मेरे मोह का, बस बहुत ग़लत किया ।


देता रहा मैं फल फूल संसार को सदा ही,

प्रगति के नाम पर मैं तो हर बार कटा ही ।


इस मैदान पर अब कोई नहीं आता है,

हर कोई केवल ज़मीनों के भाव फरमाता है।


स्वार्थ से परिपूर्ण रहा है ये समाज,

भुलाता रहा हम जैसों को लेकर हमारे अनाज।


पर संग मेरे हुए जो ये अत्याचार,

फ़लसफो से इनके बच पाने का करना ना विचार।


तुम्हारी नज़रों में तो फना मैं हो जाऊंगा,

तुम्हारा कर्मा बनकर, पर तुम्हें मैं सताऊंगा।


जब लेने को नहीं होगी थोड़ी भी सांस,

ऑक्सीजन की तलाश में आओगे मेरे ही पास।


धरती के बढ़ते तापमान से तड़पोगे जब डर कर,

रोते बिलखते आओगे तुम मेरे ही दर पर।


जल के अभाव में जब सूखेंगे कंठ के तार,

याद आएंगे तुम्हें मुझपर किए हुए वो प्रहार।


अब तो ज़ालिम संसार से सारी उम्मीदें मैंने त्यागी है,

मनुष्य के व्यवहार से बने पेड़ पौधे अब बाघी है।


तो संभल जाओ ए मनुष्य , अब भी मौका है,

काटते जो रह गए तुम हमें, तो तुम्हारा जीवन बस इक हवा का झोंका है ।


अनसुनी मेरी बातें कर तुमने जो अब भी मझे काटा,

बता देता हूं तुम्हें इसमें सिर्फ तेरा और तेरा घाटा ।।”


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