ख़ुद ही ख़ुद
ख़ुद ही ख़ुद
मैं राज़-ए-दिल को खुद में छुपाता हूँ,
अक्सर खुद ही खुद में खो जाता हूँ,
हसरतों को रोज़ाना दिल मे दबाता हूँ
मैं राज़-ए-दिल को खुद में छुपाता हूँ।
ख्यालों के कश्मकश में खुद को उलझाता हूँ,
हाल-ए -दिल बयां करने से अब भी कतराता हूँ,
जो हुआ नहीं, उस पल की तस्वीर बनाकर घबराता हूँ,
मैं राज़-ए-दिल को खुद में छुपाता हूँ।
धुंधली सी राहों पर बढ़ता जाता हूँ,
लफ़्ज़ों की तलाश में लफ़्ज़ों का ही दर खटखटाता हूँ,
गिरता, संभलता खुद की खुद से ही फरमाता हूँ,
मैं राज़-ए-दिल को खुद में छुपाता हूँ।

