आतंकवाद
आतंकवाद
ये जो तुम आतंकवाद आतंकवाद करते हो,
ये जो तुम इस बात पर रोते बिलखते हो।
क्या तुमने कभी खुद के भीतर झांककर देखा है,
की ये आतंकवाद तुममें भी होता है।
बेवजह बातो पर चक्के जाम जो तुम करते हो,
बसों, ट्रेनों को फूका सरेआम करते हो।
तुम्हारे इन कर्मों से आम आदमी जब डरता है,
तो हां ये आतंकवाद तुममें भी होता है।
जब अपनी कड़वी ज़ुबा से मानव जाति को तुम भड़काते हो,
भाईयों को अपने भाईयों से ही लड़वाते हो।
जब तुम्हारे कारण देशवासियों के मन में नफरत का बीज पनपता है,
तो हां ये आतंकवाद तुममें भी होता है।
जब खुद अपनी समझ को ताख पर तुम रखते हो,
और एक भीड़ का हिस्सा बिना किसी विचार के बनते हो।
उस भीड़ से बेवजह जब किसी का नुकसान होता है,
तो हां ये आतंकवाद तुममें भी होता है।
जब बहू बेटियों पर बुरी नजर तुम रखते हो,
जब उन्हें अपनी छोटी सोच से ही तुम परखते हो।
जब तुम्हारे कुकर्मों से सम्पूर्ण देश शर्मिंदा होता है,
तो हां ये आतंकवाद तुममें भी होता है।
जब शब्दों के बाण से जनहित की भावनाओं से तुम खेलते हो,
जब झुलसते हुए देश में बस अपनी रोटियां तुम सेकते हो ।
जब तुम्हारे अल्फाजो से ज़हर हर तरफ होता है,
तो हां ये आतंकवाद तुममें भी होता है।
तो ज़रा अपनी आंखे खोलो,
दूसरों से पहले खुद को टटोलो।
वरना वो दिन भी आएगा जब कोई बहुत ही प्यारा तुमसे कह जाएगा
की तुम्हारे कर्मों से सबके साथ मेरा भी दिल रोता है,
क्योंकि ये आतंकवाद तुममें भी होता है।