इश्क़ का विरोधी समाज
इश्क़ का विरोधी समाज
आ चल इश्क़ हम खुल के करें
दो प्यार करनेवालों ने एक दूसरे से
बिना डरे वादे थे किये कुछ ही दिन पहले,
पर डर था शायद प्यार अधूरा ना रह जाये
समाज की रीत से वो भी कोई अलग नहीं थे
बस फिर भी प्यार करनेका साहस कर बैठे,
कितने थे सपने सजाये पर समाज नामक ग्रहण
आखिर अपने बुरी छाया दिखा ही गया,
और...और क्या...? सिर्फ मौत......
इश्क़ का ये विरोधी समाज कब समझेगा
प्यार है कोई गुनाह नहीं,
प्यार है कोई धर्मविरोध नहीं।
इश्क़ के नाम पे कब तक उंगली उठाओगे
आखिर कब तक जान की बाजी
सिर्फ सरहद पे ही नहीं
प्यार का संसार
खुले आसमान के नीचे खुल के
जिंदगी जीने में भी लगानी होगी...?
