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Varsha Shidore

Abstract

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Varsha Shidore

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धरती का इंसानी इंसाफ

धरती का इंसानी इंसाफ

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इंसान ही बने इंसान का दुश्मन 

हर बात पे ऐसा मौत का मुकाबला 

इंसानियत के नाम पे झगड़े इंसान 

हार जीत का दर्दनाक फैसला।


जात,पात,धर्म को बना के हत्यार 

क्यों अड़ा है इंसान अपनी ही जिद पे 

समाज का हमेशा क्यों होता है विरोध 

कुचल दे इंसान को इश्क़ के नाम पे।


अपने सुख के लिए दाव पे लगाए 

किसी और के सपनों की मेहनत 

जलन और घुटन में सारी उम्र गवाए 

ये कैसी है इंसान की अंधी इज्जत।


क्यों हमेशा मांगता रहता है इंसाफ 

हर बार धरती का बेनकाब इंसान 

बेइज्जत होके कुचल रहा है मासूम 

पर हमेशा आज़ाद घूमता रहे बेईमान।


जो जीने की भी ना दे आज़ादी 

किस काम का है ऐसा अभिमान

ये कैसा चढ़ा है ख़ुदगर्ज़ गंज सोच पे 

सवालों का मन में मचा है तूफ़ान।


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