इश्क़ और समाज
इश्क़ और समाज
इश्क़ की बुनियाद पे तैयार हुआ ये समाज
आज इश्क़ पे ही पहरे लगाए बैठा है,
इश्क़ से बसाई जो हसीन व रंगीन दुनिया,
उसमे इश्क़ पर ही पाबंदियां लगा रखा है,
नियमों का भी अलग ही है अंदाज़ यहाँ,
किसी को रंग रूप से, किसी को पद प्रतिष्ठा से,
किसी को किसी परंपरा से एतराज़ है,
जो इश्क़ में तल्लीन हैं आज पूछो उनसे,
कितनी बुलंद उठती उनकी आवाज़ है,
और उन पर आज कितनो को नाज़ है!
कुछ जल जाते, कुछ जला दिए जाते,
कुछ के दफना दिए जाते हर राज़ हैं,
इश्क़ की यहाँ बची कहाँ लाज है,
चंद कवि शब्दों से दिलाते इसे ताज हैं,
जिसमें कई रूहानी कहानियां कह जाते
पर समाज में इश्क को जिस्मानी ठप्पा लगाते।

