इश्क़ और दिल
इश्क़ और दिल
इश्क़ और दिल की
लड़ाई में
मैं हार जाता हूँ
पागल हैं दोनों
जिद्दी , घमंडी
एक को मनाने जाऊँ
एक रूठ जाता है
क्या दुश्मनी है मुझसे
बताता नहीं कोई
पूछा मैंने इश्क़ से
क्या बात हैं भाई...?
बोला, तू जो चाहे कर ले
मैं हार मानता नहीं..
इस दिल को धूल
चटवा ही दूंगा..
किस बात का हैं
घमंड इसको.. !!
चुपचाप चला आया
वहाँ से मैं...
अब गया
दिल के पास
बोला, जिद्द न कर भाई
बात मान ले उसकी..
नो नेवर....
कभी नहीं...
वो मुझको धूल
चटवायेगा....
बोल उसे
आ जा मैदान में....
पागल हैं दोनों
जिद्दी, घमंडी
क्या बताऊँ यारों ..
दोनों की लड़ाई में
मरा मैं जा रहा..
