इंतज़ार
इंतज़ार
दिल ढूँढता जिसको
वह मिलती नहीं बाजारों में
खामोश निगाहें ताकती
प्रभु के अद्भुत किरदारों में।
अपनी पसंद मैं कह ना पाऊँ
सबसे अलग यह समझ न पाऊँ
औरों को देखूँ तो मन से रिझाऊँ
खुद पसंद सोचूँ तो ठिठक जाऊँ।
कहीं ढूँढूूँ माँ सी सौम्यता
कहीं बहन सी उत्श्रृंखलता
कहीं भाभी सी सार्वभौमिकता
कहीं साधारण सी प्रेमिका ।
सब हँसी उड़ाते हैं
ऐसी न कोई होगी
यही सब बताते हैं
मुझे ढाढस बंधाते हैं।
रिश्ते ऊपर ही बन आते हैं
उसी विश्वास हम जीते हैं
बस इंतजार उस संयोग का
जब दो दिल मिल जाते हैं।
मिलेगी जरूर इक दिन
दिल का विश्ववास कहता
मेरी पसंद अद्भुत होगी
प्रभु ने फुरसत में घड़ी होगी।
नामुमकिन कल्पना मेरी
पर दिल को इंतज़ार है
स्वर्ग लोक की अप्सरा
दिल ढूँढता प्यार है।