इंतजार सदियों से
इंतजार सदियों से
तुम थीं तो जीने का आनंद था
वरना जिंदा तो अभी भी हूं मैं
ये धरती गगन सब झूमते थे
तेरे आगे पीछे सब घूमते थे
भोर की किरणें तुझे छूकर
ऐसे फैल जाती थीं जैसे उजाला
पवन तेरी खुशबू साथ ले जाती
उससे ही पूरा संसार महकाती थी
नर्म अहसास ओस की तरह
कितना सुकून दिया करते थे
तेरे दामन को छूकर हम भी
खुद को पवित्र कर लिया करते थे
तेरी आंखों की मय का स्वाद
चखने के बाद और जंचा ही नहीं
वो जो नशा चढ़ गया था वह
लाख कोशिशों के बावजूद
आज तक गया ही नहीं ।
काश कि तेरे अधरों का अमृत
और पी लेता , थोड़ा और जी लेता
मगर , अब क्या है ?
ये दिल है कितना बेकरार
क्योंकि इसे है सिर्फ तेरा इंतज़ार
आज से नहीं सदियों से ।