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कवि हरि शंकर गोयल

Romance

4  

कवि हरि शंकर गोयल

Romance

इंतजार सदियों से

इंतजार सदियों से

1 min
278


तुम थीं तो जीने का आनंद था

वरना जिंदा तो अभी भी हूं मैं 

ये धरती गगन सब झूमते थे 

तेरे आगे पीछे सब घूमते थे 

भोर की किरणें तुझे छूकर 

ऐसे फैल जाती थीं जैसे उजाला

पवन तेरी खुशबू साथ ले जाती 

उससे ही पूरा संसार महकाती थी

नर्म अहसास ओस की तरह 

कितना सुकून दिया करते थे 

तेरे दामन को छूकर हम भी 

खुद को पवित्र कर लिया करते थे 

तेरी आंखों की मय का स्वाद 

चखने के बाद और जंचा ही नहीं 

वो जो नशा चढ़ गया था वह 

लाख कोशिशों के बावजूद 

आज तक गया ही नहीं । 

काश कि तेरे अधरों का अमृत 

और पी लेता , थोड़ा और जी लेता 

मगर , अब क्या है ? 

ये दिल है कितना बेकरार 

क्योंकि इसे है सिर्फ तेरा इंतज़ार

आज से नहीं सदियों से । 



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