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Amit Kumar

Abstract

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Amit Kumar

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इंसान

इंसान

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मेरे शहर में भी

एक गांव है

जहां आदमी-

आदमी सा रहता है

मेरे शहर में भी 

एक गांव है


जहां अंधेरा सिर्फ

रात भर रहता है

मेरे शहर में भी

एक गांव है जहां

पथिक सिर्फ 

राह भर रहता है


मेरे शहर में भी

एक गांव है

जहां धूंप ही छांव है


मेरे शहर में भी

एक गांव है

जहां कन्या धन

सर्वोत्तम है


मेरे गांव में 

बहुत से शहर है

जहां कोई गांव नहीं है

लोग तो बहुतेरे है


बहुतायत है बस

उनमें इंसान कितने हैं

सब इसी उलझन में घिरे हैं।


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