Ms. Santosh Singh
Tragedy
कैसा है ये जहाँ का मेला,
जहाँ नफरत ही पनप रहा है।
चंद रुपयों की खातिर,
इंसान बिक रहा है।
आतंकवाद
शिक्षा प्रणाल...
इंसान
समाज
अब मैं मौन रहता हूं सब कुछ देख कर भी चुप्पी साध लेता हूं. अब मैं मौन रहता हूं सब कुछ देख कर भी चुप्पी साध लेता हूं.
माँ हो जाती उस समय निरुत्तर! जब बेटा भी पिता से मिलने को आ जाता जिद पे उतर । माँ हो जाती उस समय निरुत्तर! जब बेटा भी पिता से मिलने को आ जाता जिद पे उतर ।
सुन रही हूं इन लहरों का शोर, आहिस्ता आहिस्ता खामोश हो रहा ये शोर,।। सुन रही हूं इन लहरों का शोर, आहिस्ता आहिस्ता खामोश हो रहा ये शोर,।।
अब तो ज़िन्दगी की मुसीबतें , यहाँ तक कि ज़िन्दगी भी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती है। अब तो ज़िन्दगी की मुसीबतें , यहाँ तक कि ज़िन्दगी भी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती ...
एक गतिशील राष्ट्र अचानक खामोश हो गया, संपूर्ण काबुल बेड़ियों में जकड़ दिया गया।। एक गतिशील राष्ट्र अचानक खामोश हो गया, संपूर्ण काबुल बेड़ियों में जकड़ दिया ग...
मिली नौकरी पता नहीं मैं वेतन कब तक पाऊंगा। मिली नौकरी पता नहीं मैं वेतन कब तक पाऊंगा।
दो शब्द,उसने कहा और दूसरे उसने चालाकी से उसे लोगों तक फैला दिया दो शब्द,उसने कहा और दूसरे उसने चालाकी से उसे लोगों तक फैला दिया
उदास हैं सब चेहरें क्या होगा यूँ खामोशियां पूछें क्या होगा। उदास हैं सब चेहरें क्या होगा यूँ खामोशियां पूछें क्या होगा।
मन का पंछी रात रात भर, परछाईं बोये। मन का पंछी रात रात भर, परछाईं बोये।
लौटी लंका से जिस मर्यादा के संग, एक स्त्री के संघर्ष के परिचय में बदल गया। लौटी लंका से जिस मर्यादा के संग, एक स्त्री के संघर्ष के परिचय में बदल गया।
इस दस्तूर का अंत हो जाए मेरे अंत से पहले ज़िंदगी की सबसे बड़ी जद्दोजहद यही है अब। इस दस्तूर का अंत हो जाए मेरे अंत से पहले ज़िंदगी की सबसे बड़ी जद्दोजहद यही ह...
जिसने जनम दिया, वो कहते हैं परायी हूँ l जिसने जनम दिया, वो कहते हैं परायी हूँ l
कल और आज ये समाज में नहीं होती विषमता, अपमान, घृणा के अश्रु भीमा फिर कभी नहीं पीता। कल और आज ये समाज में नहीं होती विषमता, अपमान, घृणा के अश्रु भीमा फिर कभी नहीं...
जहां हरे भरे पौधे मुस्कुराते थे और पगडंडी इठलाती थी। जहां हरे भरे पौधे मुस्कुराते थे और पगडंडी इठलाती थी।
गरीब की यातनाएं को ज़हीर करने की कोशिश की है..उम्मीद है आपको पसंद आएगा गरीब की यातनाएं को ज़हीर करने की कोशिश की है..उम्मीद है आपको पसंद आएगा
मैं सुकरात नहीं, न हूँ मैं ईसा, न ही बनना चाहती हूँ, कोई भी मसीहा मैं सुकरात नहीं, न हूँ मैं ईसा, न ही बनना चाहती हूँ, कोई भी मसीहा
पहचान राष्ट्र का बन ना सका हो प्रिये कोटि जनों का फिर भी रह राष्ट्रभाषा कहला न पहचान राष्ट्र का बन ना सका हो प्रिये कोटि जनों का फिर भी रह राष्ट्रभाष...
ताकि फिर से कोई भी हिम्मत न करे दुष्कर्म की समाज मे कोई दुबारा। ताकि फिर से कोई भी हिम्मत न करे दुष्कर्म की समाज मे कोई दुबारा।
आज एक पिता को फिर एक बेटे की घर लौटने की उम्मीद सी लगती है। आज एक पिता को फिर एक बेटे की घर लौटने की उम्मीद सी लगती है।
उसने हमें सच बोलना सिखाया, पर सबसे ज्यादा झूठ हम उसी को क्यों बोलते हैं ? उसने हमें सच बोलना सिखाया, पर सबसे ज्यादा झूठ हम उसी को क्यों बोलते हैं ?