समाज
समाज


आकार नहीं अस्तित्व नहीं,
चित्रित चित्रों का रूप नहीं।
हम किसे दोष दे, दोष नहीं,
रहनेवाले को होश नहीं।
हैं सभी अंग एक समाज का,
पर इसका स्थिर रूप नहीं।
विचलित हो जाए सिंहासन तो,
दृढता का स्वरूप नहीं।
रहने दो मुझसे मत पूछो,
हम व्याकुल हैं व्याकुलता से।
अफसोस भी है आक्रोश भी है ,
गिर जाने पर भी होश है।
पर नहीं पहुँच पाएँगे हम,
तेरी डोरी में जोर नहीं।