इमरती देवी -बनाम- जलेबी बाई
इमरती देवी -बनाम- जलेबी बाई
मेरी हैं दो पड़ोसनें,नाम है
ईमरती देवी-जलेबी बाई
देख न पाती इक दूजे को
रहती इनमें हरदम लड़ाई,
हैं,नाम से बिल्कुल मीठी
पर हैं इनके कड़वे बोल,
गली-गली कूचे-कूचे में
बजते इनकी चर्चा के ढ़ोल,
कम नहीं दोनों में कोई
एक सेर दूजी सवा सेर,
चलें अकड़ में दोनों ही
इक-दूजे से मुँह को फेर,
सबने की भरसक कोशिशें
कईं दफा इनको समझाया,
बड़े काम के होते पड़ोसी
दोनों को ही महत्व बताया,
आया आज समय एक ऐसा
फैली हर ओर ही महामारी
है नाम उसका कोरोना,आगे
जिसके सब दुनिया हारी,
फैलते-फैलते वाइरस यह
गली में हमारी आ पहुँचा,
कईं हुए परिवार संक्रमित
एक-एक को धर-दबोचा,
कोई हुआ कवा्रंनटाईन
कोई दाने-पानी को तरसा,
कोई दुनिया को छोड़ चला
सभी पर अलग कहर बरसा,
बदल गई अब सोच सभी कि
बदले पहले से अब हालात,
सिखाया बहुत कुछ कोविड़
ने,जीवन पर करके आघात,
समझ चुकी थी अब अच्छे
से,इमरती देवी-जलेबी बाई,
बढ़ा प्रेम दोनों ही में अब
होती न उनमें बिल्कुल लड़ाई,
दो दिन का यह जीवन है
क्यों लड़ना क्यों झगड़ना ?
जीयो और जीने दो सबको
क्यों व्यर्थ के चक्कर में पड़ना।