इक शोर सा है मुझमें
इक शोर सा है मुझमें
इक शोर सा है मुझमें
जो खामोश बहुत है
कभी फिकर मेंं रहता मेरी
तो कभी रहता बेख़बर
मुझसा ही यह भी मुझसे
ख़ुदग़र्ज़ बहुत है
इक शोर सा है मुझमें
जो खामोश बहुत है
हँसता देख देख मुझको
और कभी मैं भी उसको
हँसता देख देख मुझको
और कभी मैं भी उसको
मेरी हँसी में उसका
और उसकी हँसी में मेरा
शामिल दर्द बहुत है
इक शोर सा है मुझमें
जो खामोश बहुत है
वो अपनी आदतों से मजबूर
और इधर मैं अपनी
वो अपनी नादानियों में खुश
और इधर मैं अपनी
वो कहता खुशनसीब मुझे
और कभी मैं उसे
हम दोनो के रिश्ते में खूब
यह भी फ़र्ज़ बहुत है
इक शोर सा है मुझमें
जो खामोश बहुत है