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Munish Mittal

Others

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कभी कभी पुराने गीत भी बोलते है

कभी कभी पुराने गीत भी बोलते है

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कभी कभी पुराने गीत भी बोलते हैं

निराशाओं के बोझ को सीने में दबाए हुए

चलते हैं,

तो कभी आशाओं के पंखों संग डोलते हैं

हाँ.. कभी कभी पुराने गीत भी बोलते हैं।


उदास हों तो बंद कर लेते हैं खुद को

थोड़ा रो लेते हैं,

और खुशी में सब द्वार दिल के खोलते हैं,

देखो.. कभी कभी पुराने गीत भी बोलते हैं।


लम्हा लम्हा बनते, बिगड़ते, टूटते

ज़िंदगी की किताब को रंगों संग भरते

खो जाते हैं,

खाली पन्नों में जब खुद को टटोलते हैं,

तब.. कभी कभी पुराने गीत भी बोलते हैं।


सोचता हूँ कि ये गीत भी क्या हैं?

मैं लिखता हूँ इनको

और ये लिखते ही मुझसे अंजान हो जाते हैं

पुराने से हो जाते हैं

हर गुज़रते पल की कशमकश में फिर भी कैसे

खुद को नये गीतों संग तोलते हैं।

शायद.. कभी कभी पुराने गीत भी बोलते हैं।


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