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Munish Mittal

Others

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Munish Mittal

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एक अजनबी रात में!!!

एक अजनबी रात में!!!

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फिर एक अजनबी रात में

डूब रहा हूँ दिन की तरह,

कुछ अपने ख़यालों में गुम

कुछ तेरे सवालों से परेशां

ए ज़िंदगी...

मैं, चला जा रहा हूँ

बस चला जा रहा हूँ

न जाने कहाँ!


इस शाम के रंगों में

थोड़ा सिमटता, थोड़ा बिखरता

पंछियों की चहचाहाहट में

कभी जोड़ता हुआ अपना नाम

ए ज़िंदगी...

मैं, चला जा रहा हूँ

बस चला जा रहा हूँ

ढूंढता अपने निशां!


पुराने गीतों सी गुफ्तगू है,

जाने कैसी ये जूस्तजू है,

शुरू भी मुझसे

और ख़तम भी मुझ पर

ए ज़िंदगी...

तू ही बता, तू आज किसके रु-ब-रु है

अंधेरों से या उजालों से?


आज फिर एक अजनबी रात में

मैं, चला जा रहा हूँ

बस चला जा रहा हूँ

शायद डूब रहा हूँ दिन की तरह!


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