एक अजनबी रात में!!!
एक अजनबी रात में!!!
फिर एक अजनबी रात में
डूब रहा हूँ दिन की तरह,
कुछ अपने ख़यालों में गुम
कुछ तेरे सवालों से परेशां
ए ज़िंदगी...
मैं, चला जा रहा हूँ
बस चला जा रहा हूँ
न जाने कहाँ!
इस शाम के रंगों में
थोड़ा सिमटता, थोड़ा बिखरता
पंछियों की चहचाहाहट में
कभी जोड़ता हुआ अपना नाम
ए ज़िंदगी...
मैं, चला जा रहा हूँ
बस चला जा रहा हूँ
ढूंढता अपने निशां!
पुराने गीतों सी गुफ्तगू है,
जाने कैसी ये जूस्तजू है,
शुरू भी मुझसे
और ख़तम भी मुझ पर
ए ज़िंदगी...
तू ही बता, तू आज किसके रु-ब-रु है
अंधेरों से या उजालों से?
आज फिर एक अजनबी रात में
मैं, चला जा रहा हूँ
बस चला जा रहा हूँ
शायद डूब रहा हूँ दिन की तरह!