इक मुलाकात
इक मुलाकात
फूलों के बहारों में हँसना सीख लिया मैंने।
कुछ कॉंटे मिले, पर कली तोड़ लिया मैंने।।
अनजान राहों में मैंने क्या नहीं किया,
अपना समझकर गैरों से गले लगा लिया मैंने।।
नादान थे इतने ,कुछ समझ नहीं पाया।
जुबां लड़खड़ाते हुए मुहब्बत फरमाया।।
पहचान बनी मेरी वो पहली मुलाकात में।
वो भी फिदा हैं, मेरे नजरों के सौगात में।।
कोई नहीं था , अब वो मेरे हो गए।
याद करते हुए, वो दिल में समा गए।।
कितनी चाहत बनी उनको मेरे प्रति,
वो तो हर लम्हा मेरे आँखो में ही गड़ गए।।
उसको अब कैसे भूल जाऊँ मैं।
कैसे उनके आँखो का सुरमा बन जाऊँ मैं।।
अब तो दिल दे बैठे उनको अपना हम,
कैसे बेवफा बनकर उनकी राहों से जाऊँ मैं।।
इशारों में जो मुहब्बत कर बैठे।
पहले ही दफा अपना कर बैठे।।
अब तो दिल ही नहीं कहता छोड़कर जाने का।
जो इक मुलाकात में आहें भर बैठे।।