ईगो और आदमी का द्वंद
ईगो और आदमी का द्वंद
इगो की छाया में खोया आदमी,
अपने ही अहंकार में बोया आदमी।
जिसने खुद को समझा सबसे ऊँचा,
ना जाने क्यों वो खुद से ही रूठा।
आईने में खुद को देखे बिना,
अपने अंदर की दुनिया से अनजान।
इगो ने जब से उसे घेरा,
उसकी सोच बनी बस एक पहेली का खेल।
इगो ने दिया उसे झूठा गुमान,
बना दिया उसे अपने ही जीवन का शैतान।
जिसने अपने आप को समझा अजेय,
वो ना जाने क्यों हर पल में है अधूरा।
इगो और आदमी की यह कहानी,
एक ऐसी लड़ाई जो है बड़ी पुरानी।
जीते वही जो इगो को करे पराजित,
और अपने अंदर की दुनिया को करे उजागर।
इगो को छोड़, आदमी जब खुद को पहचाने,
तब जाकर वो सच्चे अर्थों में इंसान कहलाये
जो अपने अहंकार को करे दूर,
वही तो है असली जीवन का सूर।
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