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Gajanan Pandey

Abstract

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Gajanan Pandey

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इबादत

इबादत

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तुम मुझ में हो

इस तरह क़ैद !

कि दूर हो पाती नहीं

मैं और मेरी हस्ती।

तुम्हीं से सीखी है

वो रिवायत !


जिसे कहते हैं, इमा व धर्म

सभी को बख्शा है

इबादत का तोहफ़ा तुमने।

यह तो हम और

तुम पर है

कि हो पाते हैं

कितने करीब एक- दूसरे से

बस या ख़ुदा

मैं रहूं सदा तुम्हारा

और तुम रहो हरदम मेरे ।



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