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Kumar Naveen

Inspirational

4.6  

Kumar Naveen

Inspirational

हूँ गुड़िया तुम्हारी

हूँ गुड़िया तुम्हारी

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ख्वाबों की बिंदी, उमंगों का गजरा,

सपनों की काजल, सजाए चली मैं।

हों राहें कठिन, लक्ष्य दुर्गम भी तो क्या,

चुनौती की लाली, लगाए चली मैं।


हँसे लोग बेशक, कहें चाहे कुछ भी,

बढ़ती चली मैं, मगन अपनी धुन में।

हूँ गुड़िया तुम्हारी, मेरे मम्मी-डैडी,

ना हारी, ना हारूँगी, जीवन सफर में।


गरीबी ने जीना मुझे है सिखाया,

मजबूरी, इरादों को पुख्ता किया है।

ना भटकूँ कभी भी, हो मायुस पथ से,

जरूरत ने मेहनत को अपना लिया है।


बदनसीबी की बारिश में भीगी हूँ फिर भी,

चलती चली मैं, मगन अपनी धुन में।

हूँ गुड़िया तुम्हारी, मेरे मम्मी-डैडी,

ना हारी, ना हारूँगी, जीवन सफर में।


घिरी मैली नजरों की काली घटा हो,

या आँधी जमाने की दकियानुसी की।

अवरोधक बने बेशक संकीर्ण विचार,

ना परवाह है लोगों की कानाफुसी की।


छटेंगे कभी तो कुरीति के बादल,

बढ़ती चली मैं लिए आस मन में।

हूँ गुड़िया तुम्हारी, मेरे मम्मी-डैडी,

ना हारी, ना हारूँगी, जीवन सफर में।


चकाचौंध दुनिया की मोहक अदाएँ,

कर सके मुझको विचलित, ये संभव कहाँ है ?

हो बाँहें फैलाए बुराई की लपटें,

मैं मंजिल से भटकूँ, ये मुमकिन कहाँ है ?


एक आशा का दीपक जलाए निरन्तर,

गुनगुनाती चली मैं, नवीन गीत मन में।

हूँ गुड़िया तुम्हारी, मेरे मम्मी-डैडी,

ना हारी, ना हारूँगी, जीवन सफर में।।


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