हत्यारे
हत्यारे
दिनों पर उमड़ने वाली देशभक्ति
काश उमड़ने लगे दिलों पर।
नहीं है पायदान मुश्किलों के हम,
हो हर कदम मुश्किलों पर।
हर घर में लहरा़यें तिरंगा अगर ,
न पडे़ जरूरत किलो पर।
कधें से कधां मिले गर,
कदम से मिले हर क
दम हो मजिलों पर।
ना बंदूक थी हाथ में ,
ना कभी दिखी तलवार।
फिर भी मंजूर मिली,
हत्या दिल की हर बार।
कमबख्त वतन के जज्बाती
जो ठहरे हम कि,
मौत के बाद दिल लगाना,
चाहा फिर एक बार।
