हत्यारे
हत्यारे


सब अपनों को छोड़ आई पीछे मैं,
मुड़कर ना कभी देखी वो बाबुल की गलियां,
सोचा आगे सफर बहुत सुहाना है,
पर क्या पता क्या था मेरी किस्मत को मंजूर,
मेरे ख्वाबो को एक झटके में तोड़ डाला उसने,
बन गया मेरा स्वप्नहन्ता,
चूर कर दिया उसने जज्बातों का मेरे घरौंदा,
काल की मारी अभागी मैं,
किससे कहूं व्यथा, वेदना अपने मन की,
जब जीवन साथी ही बन जाये, जीवन हन्ता,
फिर क्या करूँ मैं,
हत्यारा बन तूने करें हैं इतने वार मेरे सीने पर,
जो अब ना सहे जाएं मुझसे, ना सही जाएं मुझसे।