Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Anju Singh

Abstract

3.9  

Anju Singh

Abstract

" हरसिंगार माॅं के आंगन का"

" हरसिंगार माॅं के आंगन का"

1 min
270



मायके की देहरी पर खड़ा

ये यादों का हरसिंगार

श्वेत केसरिया रंग में रंगा

मनमोहक सा यह हरसिंगार


रात में महकता है यूं 

जैसें माँ का प्यार-दुलार

मैं बँधी हूँ उस एक डोर से

जो ना होतें हुयें भी

महकती रहती है 

इस हरसिंगार सा....


इस हरसिंगार सा

उस आंगन में फिर से

मैं भी महकना चाहती हूं

यादों के उस‌ गलियारें में

फिर से खिलना चाहतीं हूं


माॅं के उस आंगन में

मन सुकून सा पाता है 

इसलिए इस हरसिंगार सा

फिर से बिखरना चाहती हूं


भलें ही रहूं कहीं और

कुछ देर यहीं ठहरना चाहती हूं

थोड़ी देर ही रहकर

पुनः महकना चाहती हूं


इन बिखरे हरसिंगार सा

यादें भी टकरातीं हैं

दूर रहकर भी तों

आंगन महका जाती हैं


जैसें आंगन के कुछ हिस्से में

खड़ा है ये हरसिंगार

वैसें ही मुझकों भी 

इस आंगन में रहनें दों

थोड़ी देर मुझकों भी

इस आंगन में महकनें दों


यादों तुम जब भी लौटकर आना

हरसिंगार हथेली पर ले आना

आंगन में गुजरें वक्त का

 बचपन का हरसिंगार बन जाना


‌सारी रात खिली बगिया में

हथेली महक पारिजात सुबह होते‌ ही दूर हुई

माॅं मैं क्यूं पारिजात बनी

क्यूं मैं तुमसें दूर हुई


हरसिंगार के फूल की तरह 

मायके के इस आंगन में

बेटियों की उम्र होती है कम

पर बिछड़कर भी अपनी खुशबू से

सबकीं ऑंखें कर देतीं नम


रात में झरने लगा है हरसिंगार

यादें ताजी हो गई फिर एक बार!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract