हृदय का साज़
हृदय का साज़
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कभी भी छेड़ दो नीलम, हृदय का साज़ अपना है
गूँजूँ बन सप्तसुरी सरगम,अलग अंदाज़ अपना है।
अभी तो नापी है मैंने, महज़ मुट्ठी भर कर ज़मीं
नीलम अंबर को छूने का, सुनो आगाज़ अपना है।
मिले आसानी से तुमको,भला सफलता वो कैसी ?
परिश्रम से है जो पाया, विजय का ताज अपना है।
नई कोई दास्तां है ये,सनम ऐसा न तुम समझो
शुरू से देखते आए, भ्रमित समाज अपना है।
नहीं कुछ आम,सब है खास,जब मैं खुद ही हूँ नीलम
जानना हर कोई चाहे,कुछ ऐसा राज़ अपना है।