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हर बेटी से प्यार करो

हर बेटी से प्यार करो

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दुराचार न करो किसी के साथ ,

ना अत्याचार करो ।

अगर प्यार करते हो खुद से ,

हर बेटी से प्यार करो ।।

**

कितना अत्याचार सहा है, 

कब तक और सहेगी ये।

कब तक गूंगी बनी रहेगी ,

कब तक नहीं कहेगी ये ।।

कब तक देखो इन्हें भेड़िये ,

नोच नोच कर खाएगे।

कब तक अनाचार के ये ,

ब्योरे दोहराए जाएंगे।।

पानी गर्दन तक आ पहुंचा ,

अब कोई उपचार करो ।

अगर प्यार करते हो खुद से ,

हर बेटी से प्यार करो ।।

**

जिन हाथों ने तन नोचा है ,

उन हाथों को काटे हम ।

टुकड़े टुकड़े कर के चीलों ,

में कव्वो में बांटें हम।।

फांसी से कम नहीं चाहिए ,

दंड खौफ ये तारी हो।

सोच न उपजे दुराचार की ,

न मन में मक्कारी हो।।

है आधार बेटियां जग की ,

सच्चाई स्वीकार करो।

अगर प्यार करते हो खुद से ,

हर बेटी से प्यार करो ।।

**

याद निर्भया को करके तुम ,

ध्यान रखो मक्कारों पर ।

नजर रखो सब दुष्टों पर ,

मन के रोगी बीमारों पर।।

याद आसिफा आये तो, 

दृष्टि हो महंगी कारों पर।

गिरजाओ, मंदिर, मस्जिद के ,

कमरों पर गुरुद्वारों पर ।।

घटना घट जाने पर क्या ,

मतलब है हाहाकार करो ।

अगर प्यार करते हो खुद से ,

हर बेटी से प्यार करो।।

**

जो बलात्कारी है लोगों ,

वो दुश्मन हर घर का है। 

जो संवेदनशील नहीं है ,

वह खालिस पत्थर का है ।।

कसम तुम्हें नन्हीं परियों की,

दुष्टों को अब मत छोड़ो ।

उनके मंसूबों को पूरा ,

होने से पहले तोङो।।

गंदी हर हरकत का लोगों ,

बढो उठो प्रतिकार करो ।

अगर प्यार करते हो खुद से ,

हर बेटी से प्यार करो ।।

  **

फरजाना थी बेकसूर क्यों ,

उसकी इज्जत को लूटा।

चार साल की बच्ची पर क्यों,

दुःख का ये पर्वत टूटा ।।

गंगा को मैली कर डाली ,

कहां पाप धो पाओगे।

उजले कपडे पहन पहन ,

कब तक खुद को उजलाओगे।।

माफी कौन तुम्हें देगा मत ,

लाशों का व्यापार करो।

अगर प्यार करते हो खुद से ,

हर बेटी से प्यार करो।।

**

नाम भले हो कुछ भी चाहे ,

नारी को सम्मान मिले ।

नर को पैदा करने वाली 

हर माता को मान मिले ।।

बच्चे तो सच्चे हैं उनमें ,

हम रब का दीदार करें।

फोङ दें आंखें जो गंदी ,

नजरो से उन पर वार करें।।

अरे बावरों अबलाओं की, 

इज्जत पर मत वार करो।

अगर प्यार करते हो खुद से ,

हर बेटी से प्यार करो।।

  **

हत्यारों ने मंदिर मस्जिद ,

को भी किया कलंकित है ।

वेहशीपन के धब्बे अब तक ,

देख रहे हम अंकित हैं।। 

ये उपासना के स्थल हैं ,

जुर्म यहां करने वाले।

चैन कहां पाएगें घट ,

पापो से ये भरने वाले।।

मंदिर मस्जिद को तो छोडो, 

मत यूं अत्याचार करो ।

अगर प्यार करते हो खुद से ,

हर बेटी से प्यार करो।।

**

तन के भूखे बने भेड़ियों ,

को कब उम्र नजर आती।

पशुता में अंधों की जिव्हा ,

बस मेले पर मंडराती ।।

कहाँ दिखाई देते उनको ,

बचपन और रिश्ते नाते।

जिनका हो किरदार मर गया ,

उनको अपयश ही भाते।।

जो नकेल डाले ऐसो को, 

वो पीढ़ी तैयार करो।

अगर प्यार करते हो खुद से ,

हर बेटी से प्यार करो।।

  **

कठुआ हो सूरत हो या ,

इंदौर लहू में सने सभी।

खुद अपने पर शर्मिंदा हैं ,

दुःख से हैं अनमने सभी ।।

कहाँ गाँव भी रहे अछूते ,

गोकुल का देखो अंजाम।

मोहङी भी बदनाम हो गई ,

यमुना नगर हुआ बदनाम ।।

पशुता डोरे डाल रही है ,

चाहे तुम इनकार करो।

अगर प्यार करते हो खुद से ,

हर बेटी से प्यार करो।।

**

अरे मनुजता के हत्यारों ,

लाज नहीं क्यों आई है।

देकर जनम तुम्हारी माँएं ,

भी देखो पछताई हैं ।।

इंसां हो तो इंसां की ,

गरिमा का ध्यान रखो मन में

नहीं जानवर को देखा ,

बंधता रिश्तों के बंधन में।।

"अनंत" पलपल सदाचार को ,

दिल में अंगीकार करो ।

अगर प्यार करते हो खुद से ,

हर बेटी से प्यार करो।।

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अख्तर अली शाह "अनंत "नीमच



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