हर बेटी से प्यार करो
हर बेटी से प्यार करो
दुराचार न करो किसी के साथ ,
ना अत्याचार करो ।
अगर प्यार करते हो खुद से ,
हर बेटी से प्यार करो ।।
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कितना अत्याचार सहा है,
कब तक और सहेगी ये।
कब तक गूंगी बनी रहेगी ,
कब तक नहीं कहेगी ये ।।
कब तक देखो इन्हें भेड़िये ,
नोच नोच कर खाएगे।
कब तक अनाचार के ये ,
ब्योरे दोहराए जाएंगे।।
पानी गर्दन तक आ पहुंचा ,
अब कोई उपचार करो ।
अगर प्यार करते हो खुद से ,
हर बेटी से प्यार करो ।।
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जिन हाथों ने तन नोचा है ,
उन हाथों को काटे हम ।
टुकड़े टुकड़े कर के चीलों ,
में कव्वो में बांटें हम।।
फांसी से कम नहीं चाहिए ,
दंड खौफ ये तारी हो।
सोच न उपजे दुराचार की ,
न मन में मक्कारी हो।।
है आधार बेटियां जग की ,
सच्चाई स्वीकार करो।
अगर प्यार करते हो खुद से ,
हर बेटी से प्यार करो ।।
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याद निर्भया को करके तुम ,
ध्यान रखो मक्कारों पर ।
नजर रखो सब दुष्टों पर ,
मन के रोगी बीमारों पर।।
याद आसिफा आये तो,
दृष्टि हो महंगी कारों पर।
गिरजाओ, मंदिर, मस्जिद के ,
कमरों पर गुरुद्वारों पर ।।
घटना घट जाने पर क्या ,
मतलब है हाहाकार करो ।
अगर प्यार करते हो खुद से ,
हर बेटी से प्यार करो।।
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जो बलात्कारी है लोगों ,
वो दुश्मन हर घर का है।
जो संवेदनशील नहीं है ,
वह खालिस पत्थर का है ।।
कसम तुम्हें नन्हीं परियों की,
दुष्टों को अब मत छोड़ो ।
उनके मंसूबों को पूरा ,
होने से पहले तोङो।।
गंदी हर हरकत का लोगों ,
बढो उठो प्रतिकार करो ।
अगर प्यार करते हो खुद से ,
हर बेटी से प्यार करो ।।
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फरजाना थी बेकसूर क्यों ,
उसकी इज्जत को लूटा।
चार साल की बच्ची पर क्यों,
दुःख का ये पर्वत टूटा ।।
गंगा को मैली कर डाली ,
कहां पाप धो पाओगे।
उजले कपडे पहन पहन ,
कब तक खुद को उजलाओगे।।
माफी कौन तुम्हें देगा मत ,
लाशों का व्यापार करो।
अगर प्यार करते हो खुद से ,<
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हर बेटी से प्यार करो।।
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नाम भले हो कुछ भी चाहे ,
नारी को सम्मान मिले ।
नर को पैदा करने वाली
हर माता को मान मिले ।।
बच्चे तो सच्चे हैं उनमें ,
हम रब का दीदार करें।
फोङ दें आंखें जो गंदी ,
नजरो से उन पर वार करें।।
अरे बावरों अबलाओं की,
इज्जत पर मत वार करो।
अगर प्यार करते हो खुद से ,
हर बेटी से प्यार करो।।
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हत्यारों ने मंदिर मस्जिद ,
को भी किया कलंकित है ।
वेहशीपन के धब्बे अब तक ,
देख रहे हम अंकित हैं।।
ये उपासना के स्थल हैं ,
जुर्म यहां करने वाले।
चैन कहां पाएगें घट ,
पापो से ये भरने वाले।।
मंदिर मस्जिद को तो छोडो,
मत यूं अत्याचार करो ।
अगर प्यार करते हो खुद से ,
हर बेटी से प्यार करो।।
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तन के भूखे बने भेड़ियों ,
को कब उम्र नजर आती।
पशुता में अंधों की जिव्हा ,
बस मेले पर मंडराती ।।
कहाँ दिखाई देते उनको ,
बचपन और रिश्ते नाते।
जिनका हो किरदार मर गया ,
उनको अपयश ही भाते।।
जो नकेल डाले ऐसो को,
वो पीढ़ी तैयार करो।
अगर प्यार करते हो खुद से ,
हर बेटी से प्यार करो।।
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कठुआ हो सूरत हो या ,
इंदौर लहू में सने सभी।
खुद अपने पर शर्मिंदा हैं ,
दुःख से हैं अनमने सभी ।।
कहाँ गाँव भी रहे अछूते ,
गोकुल का देखो अंजाम।
मोहङी भी बदनाम हो गई ,
यमुना नगर हुआ बदनाम ।।
पशुता डोरे डाल रही है ,
चाहे तुम इनकार करो।
अगर प्यार करते हो खुद से ,
हर बेटी से प्यार करो।।
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अरे मनुजता के हत्यारों ,
लाज नहीं क्यों आई है।
देकर जनम तुम्हारी माँएं ,
भी देखो पछताई हैं ।।
इंसां हो तो इंसां की ,
गरिमा का ध्यान रखो मन में
नहीं जानवर को देखा ,
बंधता रिश्तों के बंधन में।।
"अनंत" पलपल सदाचार को ,
दिल में अंगीकार करो ।
अगर प्यार करते हो खुद से ,
हर बेटी से प्यार करो।।
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अख्तर अली शाह "अनंत "नीमच