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Uma Arya

Inspirational

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Uma Arya

Inspirational

हॉं मैं वैदेही

हॉं मैं वैदेही

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हाँ मैं वैदेही.

 जन-जन ने मुझको जाना है,

सबने मुझको माना है, हाँ मै वैदेही

छोड़कर सुख राजमहल के,

पति संग वन मेंं रहीं. हाँ मैै वैदेही

माना पति का संग रहा.

पर क्या हरदम रहा

रावण के हाथोंं छली गयी।

हाँ मैं वैदेही

लक्ष्मण रेखा पार करी यह था अन्याय भारी

जबरन मैं उठायी गयी, मै थीं अबलाा नारी

मै चप थी, चाहकर भी कुछ ना कहा

हाँ मैं वैदेही

समर्पित पति प्रेम में रावण को दुत्कार दिया

मन, वचन कर्म से केवलपति को प्यार किया

अनचाहें मगर फिर मै ही अपराधी हुई

हाँ मै वैदेही

क्रूर समाज केे हाथों मैं फिर हार गयी

स्वयं की दी अग्निपरीक्षा. पर मन अपना मार गयीं

देह थी पर देह नही' सब कुछ अपना हार गयी।

हाँ मै वैदेही

प्रतिनिधित्व आज भी नारी का करती हूँ

पर मत बनना तुम वैदेही विनती सबसे करती हूँ

सम्मान की खातिर लड़ जाना, राावण केे हाथों छल मत जाना

मेरी तरह कोई अग्निपरीक्षातुम मत देना, 

नयें युग की सीता बनो तुम!

मत बनना वैदेही।

 


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