जिन्दगी
जिन्दगी
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जिन्दगी और मौत के साये में
झूलती हुई जिन्दगी
पहले रोटी फिर दवाई, फिर बिस्तर की ओर
देखती हुई जिन्दगी
अपने ही सामने अपनो का दम तोड़ती
हुई जिन्दगी
निगेटिव से पॉजिटिव और पॉजिटिव से
निगेटिव होती हुई जिन्दगी
प्रार्थना और दुआओं के बीच असमंजस
में रोती हुई जिन्दगी
अपनों से दूर रहकर भी
अपनों को साथ जोड़ती हुई जिन्दगी
हो कुछ भी मगर, आशाओं के दीप जलाती
हुई जिन्दगी
मरने के दौर में भी जीना सिखाती हुई जिन्दगी
दौर जैसा भी है गुजर जायेगा
हौसलों के परों से उड़ना सिखाती हुई जिन्दगी
