होली –रंगों का बदला स्वरुप
होली –रंगों का बदला स्वरुप
हाथों में है गुलाल
पर मन में है मलाल
कैसे रंगूँ मैं तुम्हारे गाल?
बैरी कोरोना ने दूरियाँ बढ़ा दी है।
त्यौहार पर भी लगाम लगा दी है।
ख़ुशी के रंगों में भी कालिख मिला दी है।
दो गज की दूरी से ही रंग बिखेरेंगे हम।
आओ मिलकर होली खेलेंगे हम।
प्यार बांटकर जीयेंगे हम।
रिश्ते मधुर बनाने है।
त्यौहार भी ऐसे ही मानाने है।
असमंजस में है हम।
क्या सामंजस्य ही जीवन है अब ?
क्या जिंदगी के रंग यूं ही मुट्ठी में
सिमट कर रह जायेंगे अब ?
क्या अब साथ होकर भी
अकेले ही रह जायेंगे हम?