गांधी बंदरों की करुण पुकार
गांधी बंदरों की करुण पुकार
गाँधी तेरे तीनों बंदरों को सम्हाल,
दुनिया बहुत देख चुकी है इनका कमाल
बुरा सब देख रहे है, बुरा सब सुन भी रहे है।
बुरा सब बोल भी रहे है, वाणी में जहर घोल रहे है।
या तो इनको अपने पास बुला ले,
या फिर कही से लाकर इनको जहर पिला दे।
तेरे ये चेले आँसू बहा रहे है।
दर –दर की ठोकरे खा रहे है।
ऊपर वाले ने इतना दिया की
सब अपनी मर्जी से जी रहे है।
शराब व्हिस्की को पानी की तरह पी रहे है।
तेरे बंदरों को नसीब नहीं हो रहा है खाना।
सुबह से शाम तेरे नाम का सुन रहे है ताना।
इस जालीम दुनिया ने तेरे नाम को
मिटाने की ठान ली है।
यह बात तेरे बंदरों ने जान ली है।
आकर अपने इन बंदरों को वापस ले जा।
दुनिया को अपने पैर पर कुल्हाड़ी
मारने का हक़ दे जा।
गाँधी तेरी लाठी से इन बंदरों को हांक कर ले जा।
दुर्दशा इन बंदरों की देख कर रोना आ रहा है।
स्वार्थ, लोलुपता व भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है।
गाँधी ओ बापु तू कब आ रहा है।
इन्तजार में अब रहा नहीं जा रहा है।
मंडवा कर तेरे फोटो को नोटों की फ्रेम में
तांडव मचा रहे है।
बजाकर डमरू अपने स्वार्थ का नचा रहे है।
गुनाहों के देवता धन कुबेर तुझे
अपनी तिजोरियों में जंचा रहे है।
अहिंसा के नाम पर हिंसा फैला रहे है।
मौत के तांडव में लाशें बिछा रहे है।
भ्रष्टाचार बन चुका शिष्टाचार यहाँ
ऐसे माहौल में अब जी नहीं पा रहे यहाँ।
सुनाये सदेश तेरा किसे भागम दौड़ की
जिंदगी में लोग सुन नहीं पा रहे है।
बुला ले हमे पास तेरे बापु,
अब हम थक गए ढोकर सन्देश बापू।