फूटपाथीये
फूटपाथीये
चौराहे की लाल बती जल सी जाती है
भागम दौड़ की जिंदगी थम सी जाती है
तभी, उम्मीद की एक किरण जग सी जाती है
कलाओं का प्रदर्शन बढ़ सा जाता ह।
कोई साज बाज गाने बजाने लग जाता है
कोई सफाई कर्मी बन गाड़ियाँ साफ़
करने लग जाता है
तो कोई कुछ बेचने लग जाता ह।
हाँ, यह वही फूटपाथीये है, साहब!
जो दो वक्त की रोटी की खातीर,
हाथों की कठपुतलियाँ बन जाते है।
हाँ, यह वही फूटपाथिये है, साहब!
जो एक रूपये के बदले में हजारों
दुआएँ दे जाते है
फिर भी दुत्कार दिए जाते है।
हाँ, ये वही फूटपाथीये है, साहब!
जो शराब के नशे में गाड़ियों तले
कुचल दिए जाते है।
सांसें थम सी जाती है
जिंदगी गुजर सी जाती है
कुछ स्मृति शेष रहता है, तो वह है –
एक रूपया दे दो ना, साहब!
भगवान आपका भला करेगा।
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