होली की रुत है आई
होली की रुत है आई
देखो सखी ओ देखो सहेली होली की रुत है आई
रंग बिरंगी रंगो वाली होली की है रुत आई
रंग भरी पिचकारी तुम भी अब ले आओ
मैं तुम पर और तुम मुझ पर अब रंग लगाओ
बरसाने रंगो की बौछार,होली की रुत है आई
स्नेह मिलन के त्यौहार,होली की रुत है आई
देखो सखी ओ देखो सहेली होली की रुत है आई
पिचकारी और ग़ुब्बारों की हो रही है मारा मारी
अब तुम भी रंग लगाओ बारी बारी
हरे, गुलाबी नीले पीले दे रहें चेहरे हैं दिखाई
चंग, मृदंग, ढोलक के भी कोलाहल दे रहें हैं सुनाई
शीत ऋतु अब दे रही है विदाई
ग्रीष्म ऋतु के आने की आहट दे रही है सुनाई
फागुन के इस मौसम में पुरवाई भी है बौराई
धरती ने पीली सरसों की चादर है बिछाई
अंबर ने भी नीली नीली चादर है फैलाई
हर जगह रंग बिरंगी उड़ रही गुलाल है,
देता बस इंद्रधनुष ही दिखाई
देखो सखी ओ देखो सहेली होली की रुत है आई।
