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भाऊराव महंत

Romance

4  

भाऊराव महंत

Romance

होली के रंग

होली के रंग

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होली के रंगों से देखो, छाई नई बहार

लगता ऐसे आई गोरी, कर सोलह शृंगार।


रंग-बिरंगे गाल तुम्हारे, और अधर मुस्कान,

हत्यारी बन मेरे मन का,करती है संहार।


नीले-पीले लाल-गुलाबी, और अनेको रंग, 

बढ़ा रहे हैं सुंदरता वो, गोरी आज अपार।


रंग लगा है इतराने अब, चिपक तुम्हारे साथ,

जैसे गोरे अंगों से वह, करता हो मनुहार।


चोली भीगे, साड़ी भीगे, भीगे सारे अंग, 

इंद्रधनुष के रंगों सा है, यौवन का विस्तार।


ललचाती है बरबस मन को, भीगी सारी देह, 

बाहों में तुमकोे भरने को, तरसे मन लाचार।


प्यार करूँगा जी भर तुमको, कर मुझ पर विश्वास,

मिल जाओ जो मुझको गोरी, जीवन में इक बार। 


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