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ATUL MISHRA

Abstract

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ATUL MISHRA

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हो ! तुम

हो ! तुम

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जो मिली नहीं किसी को वो दुआ हो तुम

मैं हूँ प्यासा और कुआँ हो तुम 


बिन मौसम की बारिश नहीं सावन की फुहार हो तुम

प्रिय के प्रियतम का  इंतजार हो तुम 


गर्मी की कडक धूप मैं सुनहली छांव हो तुम 

गमों के इस समुन्दर में खुशी के हल-चल की नाव हो तुम


मैं हूँ जिन्दगी और सांस हो तुम

मैं दूर हूँ तुमसे पर मेरे पास हो तुम


आज तक अनजान हूँ जिससे वो राज हो तुम

मेरे लिए  खुदा का संवारा  ताज हो तुम 


मेरे होने का इस जहां में एहसास हो तुम

अब नहीं मिला जो वो तलाश हो तुम  


अतुल के गजल की साज हो तुम

दर्द-ए-दिल बयां करने वाला अल्फाज हो तुम।


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