हो मुहब्बतें ही मुहब्बतें
हो मुहब्बतें ही मुहब्बतें
अब सांप बनके नाचते, मजहबी बीन की तान पर
इन्सान थे हम याद कर, इंसानियत का गुमान कर.
इन बरछियों को तोड़ दें और घोड़े वापस मोड़ दें
लड़लड़ के क्या हासिल हुआ, सब मिट गया है ये ध्यान कर।
हो मुहब्बतें ही मुहब्बतें,चल ऐसा हिन्दुस्तान कर
मैं मस्जिदों में भजन करूं, तू मन्दिरों से अजान कर।
जिये जिन्दगी इस ढंग से, मिल खेलें होली रंग से
मैं गुलाब लेके आऊंगा, इस ईद तेरे मकान पर।
चढ़ी त्यौरीयों को ढील दे, जला प्यार की कंदील दे
आ शबनमी मलहम मलूं, तेरी आंखों की थकान पर।
