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Sudhir Srivastava

Comedy

4  

Sudhir Srivastava

Comedy

हँसी का पात्र

हँसी का पात्र

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ऐसा भी होता है यह विश्वास तो नहीं होता 

पर करना ही पड़ता,

क्योंकि अविश्वास का कोई कारण भी अब शेष नहीं है,

यह सिर्फ मेरे साथ नहीं हुआ या होगा 

ऐसा भी बिल्कुल नहीं है, 

आपके साथ भी हुआ होगा, हो रहा है 

और आगे भी होता रहेगा।

नकार सकते हैं तो नकार कर दिखाइए

अन्यथा चुपचाप मेरी बातों पर विचार कीजिए।

आपने ही तो कल कहा था 

कि उसने पहले खूब मान सम्मान दिया 

स्वाभिमान का अधिकार दिया।

खुशियां दी, आंसू पोंछे, हौसला बढ़ाया,

फिर आज ऐसा क्या हुआ?

कि उसने ही अविश्वास का पौध रोपण किया,

जल, खाद, पानी देकर उसे संरक्षित किया 

और फिर उसी पौध को उखाड़कर सीधा प्रहार कर दिया।

ऐसा क्यों किया? कुछ कहा भी नहीं 

बस आत्मा को घायल कर दिया 

जाने कौन सा रत्न पा लिया?

यह हमें या आपको नहीं उसे समझने की जरूरत है 

जिसने खुद अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारी लिया।

उससे शिकवा शिकायत न करें ज़नाब 

क्योंकि हर किसी के जीवन जीने का अपना तरीका है

कब, कैसे जीना है, हर किसी का अधिकार है 

हम हों या आप या कोई भी हो 

किसी को विवश भी तो नहीं कर सकते 

किसी के भी जीने के अंदाज और स्वभाव को 

बदल भी तो नहीं सकते।

क्योंकि किसी पर किसी का अधिकार भी नहीं है,

अच्छा है जो बीत गया उसे भूल जाइए 

जो जैसा रहना चाहे उसे वैसा ही रहने दीजिए 

जो जिसमें खुश रहना चाहे, रहने दीजिए।

चिंता करनी ही है तो खुद की कीजिए 

आपको कैसे जीना और खुश रहना है 

इस पर गंभीरता से विचार कीजिए।

या फिर औरों की चिंता में अपने को नाकाम कीजिए 

सिर्फ दूसरों पर दोषारोपण कर रोना रोते रहिए,

जीवन की खुशियों का खून अपने ही हाथों करते रहिए

और जनमानस की नजरों में हँसी का पात्र बनते रहिए।



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