हमें दुर्गा बनकर रहना हैं।
हमें दुर्गा बनकर रहना हैं।
वह सहमी थी, घबराई थी,
आंखों से नदियाँँ बह आई थी।
ना अस्त्र था, ना शस्त्र था,
फिर भी लड़ना वह चाही थी।
वह दरिंदे फिर भी रुक ना सके,
कुछ क्षण के लिए भी सोच ना सके।
राखी भी बहन की दिखे नहीं,
ना उनको मां की झलक दिखी।
वो धूर्त कपटी निर्दयी थे,
वह गंदी नाली के कीड़े थे।
सब खड़े वही पर देख रहे,
पर कदम उनके भी बढ़े नहीं,
बात उनके घर पर जो ना आई थी।
द्रोपती की रक्षा करने को,
कृष्ण भी अब बचे नहीं।
खुद ही काली बनकर के,
निर्दयी को सबक सिखाना है।
हमें दुर्गा बनकर रहना है,
हमें दुर्गा बनकर रहना हैं।