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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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हमारी जिम्मेदारी

हमारी जिम्मेदारी

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बहुत गर्व होता है हमें

कि मानव हैं हम,

मगर अफसोस भी है 

कि मानव होकर भी 

हम मानव धर्म से भाग रहे हैं।

विचार कीजिए 

क्या हम सचमुच मानव हैं?

प्रश्न कठिन है

परंतु सच में हम मानव हैं

कहना जितना सरल है

मानना उतना ही मुश्किल है।

क्योंकि अपने निहित स्वार्थ वश

हम वो सब करते हैं

जिसे नहीं करना चाहिए।

पेड़ पौधे जंगल काट रहे हैं

हरियाली को मिटा रहे है,

नदियां नालें हमारे मानव होने का

दंश झेलती कराह रही हैं।

पशु पक्षियों, जीव जंतुओं को भी 

कहाँ हम बख्श रहे है,

संरक्षण देने का बजाय

बड़ी शान से 

उनका भक्षण कर रहे हैं।

अब तो आँखें खोलिए

जीवों को संरक्षण दीजिए,

ईश्वरीय व्यवस्था में 

न बाधक बनिए।

हम मानव हैं

कहने से भला क्या होगा?

सच में मानव हैं तो 

मानव बनकर भी दिखाइए

मानव होने का 

सुखद अहसास भी तो कराइए।


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