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Vikram Kumar

Abstract

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Vikram Kumar

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हमारी जान है हिन्दी

हमारी जान है हिन्दी

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हमारी मातृभाषा है , हमारी आन है हिन्दी

सभी को अपने अंदर में समेटे खान है हिन्दी

सभी भाषाएं जो जग में हैं वे भाषाएं हैं लेकिन

हमारी मां से बढ़कर है , हमारी जान है हिन्दी


हमने अपने बचपन से इसे ही कहना है सीखा

इसके बिन जो सोचा तो लगा चारों तरफ फीका

यह संसार की सबसे सरल,सबसे सहज भाषा

ये भाषा ही नहीं ये है सभी भाषा की परिभाषा

है हिन्दी से ही अपना हिंद,हिन्दुस्तान है हिन्दी

हमारी मां से बढ़कर है , हमारी जान है हिन्दी


हिन्दी ने ही हर रिश्ता हर नाता सिखाया है

गंगा गाय पृथ्वी को कहना माता सिखाया है

संस्कृति के सहज आकार सब इसमें ही रहते हैं

इसी से सीख ले चंदा को भी मामा हम कहते हैं

अनूठे सभ्यताओं की सरल पहचान है हिन्दी

हमारी मां से बढ़कर है , हमारी जान है हिन्दी


बनेंगे हम मुखर और प्रखर आवाज हिन्दी के

कसम हम लेते हैं ये दिवस पर आज हिन्दी के

कि हिन्दी को धरा से हम गगन तक लेके जाएंगे

इसकी मजबूती को कदम हरसंभव उठाएंगे

ईश्वर ने दिया इस हिन्द को वरदान है हिन्दी

हमारी मां से बढ़कर है , हमारी जान है हिन्दी

हमारी मां से बढ़कर है , हमारी जान है हिन्दी



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