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Veeru Sonker

Fantasy

3  

Veeru Sonker

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हमारे समय की कविता

हमारे समय की कविता

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अपने समय की भूल-सुधार प्रक्रिया से खिन्न 

वह कोई था,

जो चाहता था प्रतीक्षा के ठहरे पलो का और गतिमान होना

और 

जो चलते रहना चाहता था 

पृथ्वी के घूमने की रफ़्तार से तालमेल बना कर

जो चाहता था कि रात और दिन उसके हिसाब से हो

जो बारिश में भीगे तो मन भर भीगे

जो जीभ फिरा लेने भर से 

अपने स्वाद में आम की उपस्थिति चाहता था 

जो मांग करता था,

असमंजस से भरे हुए सभी चौराहो से

कि अब हर सड़क एकदम सीधे चलेगी

जो अपने जूतों के तल्लो में 

तितलियाँ बाँध हवा से हल्का होना चाहता था

जो गायब तो था 

पर हर किसी में मौजूद था!


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